चलते चलते जब कदम तेरे डगमगाने लगे,
पथ के पत्थर से पैर जब लड़खड़ाने लगे,
न खोना साहस,
क्योंकि
मंजिल है अब बहुत निकट।
जिस मंजिल के लिए चला तू डटकर अब तक,
बिन लिये किसी की कोई ख़बर,
है जिसके लिए आँखों में खाब अनगिनत,
वो मंजिल है अब बहुत निकट।
पथ के पत्थर से पैर जब लड़खड़ाने लगे,
न खोना साहस,
क्योंकि
मंजिल है अब बहुत निकट।
जिस मंजिल के लिए चला तू डटकर अब तक,
बिन लिये किसी की कोई ख़बर,
है जिसके लिए आँखों में खाब अनगिनत,
वो मंजिल है अब बहुत निकट।
न करना बदनाम इसे अब राह बदल,
मुश्किलें को करती हैं परीक्षा मंजिल तलक,
जो बढ़ गयी हैं आज यें,
तो समझ मंजिल है अब बहुत निकट।
मुश्किलें को करती हैं परीक्षा मंजिल तलक,
जो बढ़ गयी हैं आज यें,
तो समझ मंजिल है अब बहुत निकट।
तेरे साहस के आगे क्या विपदायें टिक पाएंगी,
जो न चाहे तू, तो क्या तुझको ठग पाएंगी?
कर साहस और बड़ा कदम,
क्योंकि
मंजिल है अब बहुत निकट।
जो न चाहे तू, तो क्या तुझको ठग पाएंगी?
कर साहस और बड़ा कदम,
क्योंकि
मंजिल है अब बहुत निकट।