जिससे मिलने को मैं तरसता था,
उसको भी मेरी तलाश थी,
मालूम मुझे ये हुआ तभी,
जब रु-ब-रु मुलाकात हुई
खामोश वो रहा
और चुप मैं रही ,
बातें तो थी करने को लाख मगर,
अल्फ़ाजो से काम न चलता था ।
यूहीं वो मुझे तकता रहा
और मैं भी कहीं गुम रही
आँखों से वो मुझे पढ़ता रहा
और मैं लम्हों को संजोति रही ।
वक़्त यूही बढ़ता रहा,
उसको भी मेरी तलाश थी,
मालूम मुझे ये हुआ तभी,
जब रु-ब-रु मुलाकात हुई
खामोश वो रहा
और चुप मैं रही ,
बातें तो थी करने को लाख मगर,
अल्फ़ाजो से काम न चलता था ।
यूहीं वो मुझे तकता रहा
और मैं भी कहीं गुम रही
आँखों से वो मुझे पढ़ता रहा
और मैं लम्हों को संजोति रही ।
वक़्त यूही बढ़ता रहा,
जिससे मिलने की मुझे तलाश थी,
उसको भी मेरी तलाश थी ।
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